क्या भारत भी कांस्पिरेसी थियरी में भरोसा करनेवाला देश बनता जा रहा है?

आज सुबह ‘इकनामिक टाइम्स’ अखबार में एंकर स्टोरी पर नज़र पड़ गई. वेंकट अनंथ की इस स्टोरी का शीर्षक है: “सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बारे में हैरान करनेवाली और कभी दुष्टतापूर्ण कांस्पिरेसी थियरिज जो सोशल मीडिया पर फलती-फूलती रहीं. (The strange, sometimes sinister conspiracy theories on Sushant Singh Rajput’s death that flourished on social media)” (14 अक्तूबर 20)

यह रिपोर्ट आप यहाँ पढ़ सकते हैं: https://economictimes.indiatimes.com/tech/internet/the-strange-sometimes-sinister-conspiracy-theories-on-sushant-singh-rajputs-death-that-flourished-on-social-media/articleshow/78636570.cms

इस रिपोर्ट में वेंकट अनंथ ने तेजी से लोकप्रिय हो रहे और दुनिया भर में फ़ैल रहे अमरीकी कांस्पिरेसी थियरी समूह- क्यू-अनान का उल्लेख करते हुए बताया है कि कैसे उसकी तर्ज पर ही अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की दुखद मौत के बाद सोशल मीडिया नेटवर्क्स खासकर फेसबुक और यू-ट्यूब पर हैरान करनेवाले और कई मामलों में खतरनाक और दुष्टतापूर्ण कांस्पिरेसी थियरिज फैलाई गईं जिसे लाखों लोगों ने देखा और पढ़ा.

मेरी दिलचस्पी इस रिपोर्ट में इसलिए भी जग गई क्योंकि अभी हाल ही में कांस्पिरेसी थियरी समूह- क्यू-अनान पर नवभारत टाइम्स-गोल्ड के लिए एक लम्बी रिपोर्ट लिखी थी. यह टिप्पणी आप यहाँ पढ़ सकते हैं: https://navbharattimes.indiatimes.com/navbharatgold/day-today/qanon-conspiracy-theory-in-america/story/78518028.cms   

कहने की जरूरत नहीं है कि ये कांस्पिरेसी थियरिज सिर्फ सोशल मीडिया तक सीमित नहीं थी. मेनस्ट्रीम न्यूज मीडिया खासकर कई टीवी न्यूज चैनलों ने भी सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बारे में इन कांस्पिरेसी थियरिज को न सिर्फ हवा दी बल्कि उसे एक तरह की वैधता भी प्रदान की. इन चैनलों ने इन कांस्पिरेसी थियरिज को डार्क वेब और सोशल मीडिया से बाहर एक तरह से मेनस्ट्रीम भी बना दिया.

ईटी के रिपोर्टर वेंकट अनंथ इस दावे में दम है कि सुशांत सिंह राजपूत की मौत को लेकर जिस तरह की कांस्पिरेसी थियरिज फैलाई गईं, उनमें और कुख्यात अमरीकी कांस्पिरेसी थियरी गुट- क्यू-अनान की ओर से फैलाई जानेवाली कांस्पिरेसी थियरिज में काफी समानताएं हैं. तथ्य यह है कि इन दोनों में न सिर्फ समानताएं हैं बल्कि एक पैटर्न दिखाई पड़ रहा है.

मानिए या मत मानिए लेकिन यह साफ़ दिखाई पड़ रहा है कि सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बहाने भारत में क्यू-अनान का आगमन हो चुका है. इस मामले में जिस तरह से क्यू-अनान के पैटर्न पर टीवी न्यूज चैनलों के सक्रिय सहयोग और अगुवाई में सोशल मीडिया और न्यूज चैनलों पर ये कांस्पिरेसी थियरिज फैलाई गईं और उन्हें जिस तरह से अनुदार-दक्षिणपंथी संगठनों और समूहों ने हाथों-हाथ लिया, वह इस बात का सबूत है कि पब्लिक स्फीयर में क्यू-अनान के भारतीय संस्करण और जहरीली कांस्पिरेसी थियरी का प्रवेश हो चुका है.

लेकिन इसमें हैरान होने की जरूरत नहीं है. असल में, भारत में क्यू-अनान और उसकी कांस्पिरेसी थियरी के लिए जमीन न सिर्फ तैयार थी बल्कि उसमें काफी पहले से खाद-पानी डालकर तैयार रखा गया था. तथ्य यह है कि देश पिछले कई वर्षों से सोशल मीडिया और खासकर व्हाट्सएप्प के जरिये कांस्पिरेसी थियरिज में बजबजा रहा है.

इन कांस्पिरेसी थियरिज के सबसे आसान शिकारों में महात्मा गाँधी से लेकर नेहरु जैसे राष्ट्रीय आन्दोलन के बड़े नेता और प्रधानमंत्री हैं. विपक्षी दलों के नेता, पिछली यूपीए सरकार और गैर-एनडीए पार्टियों की राज्य सरकारें भी निशाने पर हैं. इन कांस्पिरेसी थियरिज में ये गल्प-कथाएं तो शाश्वत सी हो चली हैं कि कैसे मुसलमानों की जनसँख्या तेजी से बढ़ रही है, कैसे एक मुसलमान के अनेकों बीबियाँ और दर्जनों बच्चे होते हैं, कैसे हिन्दू अपने ही देश में घट रहे हैं आदि-आदि.         

दूसरी ओर, इन कांस्पिरेसी थियरिज में विदेशी बैंकों में भ्रष्ट नेताओं, अफसरों और कारोबारियों के खरबों रूपये जमा होने से लेकर 2000 के नोट में नैनो-चिप्स लगाए जाने जैसी अनेकों अफवाहें, चर्चाएँ और आरोप हैं जो संगठित तरीके से सोशल मीडिया और व्हाट्सएप्प के जरिये खूब नमक-मिर्च लगाकर लोगों तक पहुंचाई जा रही हैं. हर दिन सुबह से लेकर शाम तक औद्योगिक स्तर पर पैदा की जा रही ये कांस्पिरेसी थियरिज व्यापक स्तर राजनीतिक प्रोपेगंडा का हिस्सा हैं.  

हालत यह हो गई है कि देश में लाखों लोग इस लगातार 24x7 कांस्पिरेसी थियरिज के बुलबुले में रहने के कारण वास्तविकता से कट से गए हैं या उनके लिए सच या तथ्य के कोई मायने नहीं रह गए हैं. उनका अपना ही “सच” है और उसके लिए गढ़े हुए अपने “तथ्य” हैं. वे एक ‘मेक बिलीव वर्ल्ड’ में रहने लगे हैं जिसे आप चाहें तो उत्तर सत्य (पोस्ट ट्रुथ) दुनिया कह सकते हैं. आप उनसे चर्चा या बातचीत में उनके मन में बैठी कांस्पिरेसी थियरी को प्रमाणित तथ्यों और साक्ष्यों पर आधारित सच के साथ चुनौती दीजिये लेकिन ज्यादातर मामलों में वे उसे स्वीकार नहीं करेंगे.

दूसरी ओर, अगर किसी तरह से किसी खास कांस्पिरेसी थियरी के दावे साबित नहीं हुए या भविष्यवाणी के मुताबिक चीजें घटित नहीं हुईं या सच्चाई सामने आ गई और उसे एक व्यापक स्वीकृति मिल गई तो कांस्पिरेसी थियरी की फैक्ट्री चलानेवाले उसमें तोड़मरोड़ कर नए दावे करने लगते हैं, नई कहानियां गढ़ने लगते हैं, सवाल उठाने और तथ्य सामने लानेवाले की विश्वसनीयता को चुनौती देने लगते हैं और कुछ नहीं चला तो किसी नए कांस्पिरेसी थियरी की ओर बढ़ जाते हैं.

उदाहरण के लिए सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में एम्स की रिपोर्ट और दूसरे तथ्यों के सामने आने के बाद भी कांस्पिरेसी थियरी की कहानियां और दावे खत्म नहीं हो रहे हैं. हैरानी नहीं होगी अगर कांस्पिरेसी थियरी गढ़ने वाले जल्दी नई कहानियों और दावों के साथ सामने आ जाएँ.

कहते हैं कि जब तक सच जूते के फीते बांधता है, झूठ पूरी दुनिया का चक्कर लगा आता है. कुछ ऐसे ही जब तक फैक्ट चेकर्स कांस्पिरेसी थियरी के दावों की पड़ताल करते और उसका खंडन-मंडन करते हैं, कांस्पिरेसी थियरी की गल्प कथाएं या तो व्हाट्सएप्प और सोशल मीडिया के जरिये बहुत दूर पहुँच और लोगों के बीच बैठ चुकी होती हैं या फिर कांस्पिरेसी थियरी की फैक्ट्री में नई कहानी गढ़ी जा चुकी होती है.

यही नहीं, जो लोग कांस्पिरेसी थियरी के बीच दिन-रात सोते-जागते, खाते-पीते और उठते-बैठते हैं, उनकी मानसिक बुनावट ऐसी बन जाती है कि वे न सिर्फ इसके आदती (एडिक्ट) बन जाते हैं बल्कि इसके अलावा कुछ और स्वीकार नहीं करते हैं. कांस्पिरेसी थियरी की ट्रेनिंग ऐसी होती है कि वे कांस्पिरेसी थियरी के वैचारिक-राजनीतिक उत्पादकों से इतर प्रतिष्ठान (एस्टेब्लिशमेंट) या विरोधी पक्ष से आनेवाले तथ्यों और सच्चाई को भी कांस्पिरेसी के अंग के रूप में देखते हैं.

दरअसल, कांस्पिरेसी थियरी एक तरह की अमरबेल है. वह एक खास तरह के वैचारिक-राजनीतिक-सामाजिक माहौल में फलती-फूलती है. इन दिनों दुनिया भर में धुर दक्षिणपंथी-अनुदार-आप्रवासी विरोधी-सांप्रदायिक-रंगभेदी राजनीतिक-वैचारिक माहौल में कांस्पिरेसी थियरी सबसे ज्यादा फल-फूल रही है. अमरीका में पिछले तीन साल में क्यू-अनान का उभार और विस्तार का सीधा संबंध वहां के मौजूदा वैचारिक-राजनीतिक-सामाजिक माहौल से है.

क्यू-अनान एक ऐसा एक ढीला-ढाला समूह है जिसके पीछे धुर दक्षिणपंथी-श्वेत श्रेष्ठतावादी सक्रिय हैं जिसे एक तरह की वैधता देने में टाक रेडियो के जानेमाने होस्ट, सेलिब्रिटीज, राइटविंग बुद्धिजीवी, न्यूज एंकर से लेकर खुद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तक की भूमिका है. आश्चर्य नहीं कि इस माहौल में 2016 में राष्ट्रपति चुनावों में ट्रंप की जीत हुई और उसके आगे-पीछे क्यू-अनान जैसा जहरीला कांस्पिरेसी थियरी समूह फल-फूला है.

लेकिन क्यू-अनान अब सिर्फ एक अमरीकी परिघटना नहीं है. इसका प्रसार यूरोप के जर्मनी, ब्रिटेन आदि से लेकर आस्ट्रेलिया जैसे कई देशों तक में हो चुका है. इसके प्रसार में सबसे प्रमुख भूमिका धुर दक्षिणपंथी-श्वेत श्रेष्ठतावादी-नव नाज़ी संगठनों और समूहों की है. उन्होंने इसे हाथों-हाथ लिया है.     

जाहिर है कि भारत भी इसका अपवाद नहीं है. यहाँ भी कांस्पिरेसी थियरी का बाज़ार गर्म है. लेकिन इसके कारण देश में सार्वजनिक विमर्श बहुत जहरीला और टकरावपूर्ण हो गया है. संस्थाओं में अविश्वास बढ़ता जा रहा है. राजनीतिक प्रोपेगंडा सच और तथ्य का पर्याय बनता जा रहा है.

यह भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है.      

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आनंद प्रधान

देश-समाज की राजनीति, अर्थतंत्र और मीडिया का अध्येता और टिप्पणीकार